रविवार, 6 मई 2018

तेरे बदलने की आशा में,,,,

आँखों और नींदों का था,वह साथ अनूठा छूट गया !
अधरों संग मुस्कानों का,बंधन भी प्यारा टूट गया !
तेरे बदलने की आशा में,गम सारे ही सहता आया
बहुत संभाला पर आखिर में,बांध सब्र का फूट गया !!

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