आँखों और नींदों का था,वह साथ अनूठा छूट गया ! अधरों संग मुस्कानों का,बंधन भी प्यारा टूट गया ! तेरे बदलने की आशा में,गम सारे ही सहता आया बहुत संभाला पर आखिर में,बांध सब्र का फूट गया !!
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