"बनना है उन्हें शूल"
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इंसानियत की बात अब करना फिजूल है ।
हैवानियत ही बन गयी अब तो उसूल है ।
हर रोज लूट रही है बेटियों की अस्मतें
माँगने पे न्याय कहते है,तुम्हारी ही भूल है!
दरिंदों को नही डर कोई,कानून का यहाँ
शैतान को ही मानते,ये अपना रसूल है!
कितने बने कानून पर,यह धूल नही सका
कबसे जमा हुआ जो,वासना का धूल है!
जो घूरतें है बेटियाँ,औरों की वे सुनले
पाते नही वे आम जो,बोते बबूल है!
सब बेटियों को पाठ यह,माँ बाप सीखा दें
बनना है उन्हें शूल,न कि बनना फूल है !
अपराध तो अपराध है,नही रंग दो इसको
क्यों मौन हो गीता पे औ असीफा पे तूल है!
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