है किसान अस्तव्यस्त,व्यवस्था से बड़े त्रस्त
अँखियों में आँसू लिए,पूछते सवाल है!
हाड़तोड़ श्रम कर,अन्न को उगाने वाले
क्यों विवश बेचने को,कौड़ियों में माल है!
तकादे को बार बार,द्वार आता साहूकार
कैसे वें चुकाएँ कर्ज,सोंचके बेहाल है!
मौत ही है बेहतर,जिल्लत के जीवन से
सोंचकर झूल फाँसी,चुन रहे काल है!
सुनिल शर्मा नील
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
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