******************************** दिखाये जो इन्हें दर्पण,,उन्हें शत्रु समझते है जो करते व्यर्थ ही तारीफ,उनको मित्र कहते है स्वयं पर मुग्ध है देखो,यहाँ कितने कविगण ही जो झूठी शान की जलधार में,दिन रात बहते है! ***********************************
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