********************************* कुएँ के कुपमंडूक है,कुएँ में ही ये रहते है जो करते वाहवाही है,उन्हें ही मित्र कहते है स्वयं पर मुग्ध है देखो,यहाँ कितने कविगण ही जो झूठी शान की जलधार में,दिन-रात बहते है! ***********************************
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