रविवार, 17 दिसंबर 2017

आदमी वेताल नजर आता है

हर आँख खून यहाँ,हर गली लाल है क्यों
देश मेरा आज ये,बेहाल नजर आता है
स्वारथ की लालसा में,हर सीमा लांघ रहा
संस्कारों से आदमी,कंगाल नजर आता है
जिसने है पाला पोसा,सींचकर बड़ा किया
आज उसे बाप भी,जंजाल नजर आता है
नरक के शैतान भी,दंग देख आदमी को
उनसे भी बड़ा ये,वेताल नजर आता है!

गधा मन माल,,,

गधहा मन माल उड़ावत हे
बघवा मन कांदी खावत हे
पढ़े लिखे मन ठलहा हे इहा
अउ अंगूठाछाप देश चलावत हे!

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

एक प्रबंध हो राष्ट्रवाद का

सारे सम्बन्धों से बढ़कर,एक सम्बन्ध हो राष्ट्रवाद का
मातृभूमि की खातिर जीने,एक अनुबंध हो राष्ट्रवाद का
हर दिल की धड़कन में हो,हर साँस में ये सुमिरा जाए
भेदभाव को भूलके सारे,एक प्रबंध हो राष्ट्रवाद का!


रविवार, 10 दिसंबर 2017

थानखम्हरिया में हुई राजभाषा आयोग के प्रांतीय कार्यक्रम हेतु तैयारी बैठक

राजभाषा आयोग के प्रांतीय कार्यक्रम की तैयारी हेतु हुई चर्चा बैठक
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थान खम्हरिया:-छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के त्रिदिवसीय प्रांतीय  कार्यक्रम जो बेमेतरा में 19 से 21 जनवरी 2017 को होना है हेतु चर्चा बैठक थानखम्हरिया में कवि गिरधारी देवांगन के व्यवसायिक प्रतिष्ठान में आज  10/12/2017 को हुई जिसमें थानखम्हरिया से प्रांतीय कार्यक्रम जाने वाले साहित्यकारों के नामों पर चर्चा हुई!साथ ही कार्यक्रम हेतु तन मन से जिम्मेदारियों के निर्वहन कर कार्यक्रम को अपनी मेजबानी में ऐतिहासिक बनाने पर चर्चा हुई!विदित हो कि इस आगामी प्रांतीय कार्यक्रम में 1000 से ज्यादा कवियों द्वारा काव्यपाठ कर ,,कवि सम्मेलन को वर्ल्ड रिकार्ड बुक में दर्ज करवाने की योजना है!इस बैठक में मुख्यरूप जिला राजभाषा समन्वयक श्री रामानंद त्रिपाठी जी,श्री गोकुल बंजारे जी,निराला साहित्य समिति थानखम्हरिया के अध्यक्ष श्री राजकमल दररिहा जी,श्री गिरधारी देवांगन जी,श्री रामस्नेही नामदेव जी,श्री मूलचंद निर्मलकर जी एवम सुनिल शर्मा"नील" उपस्थित रहे!

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

जो झूठी


नही भाते उजाले को,,,,अंधेरे में ही रहते है
जो करते व्यर्थ तारीफें,उन्हें ही मित्र कहते है
स्वयं में मुग्ध है देखें,,यहाँ कितने कविगण ही
जो झूठी शान की धारा में,दिन और रात बहते है !

कुएँ के कूपमण्डूक है


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कुएँ के कुपमंडूक है,कुएँ में ही ये रहते है
जो करते वाहवाही है,उन्हें ही मित्र कहते है
स्वयं पर मुग्ध है देखो,यहाँ कितने कविगण ही
जो झूठी शान की जलधार में,दिन-रात बहते है!
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स्वयं पर मुग्ध है देखो,,,


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दिखाये जो इन्हें दर्पण,,उन्हें शत्रु समझते है
जो करते व्यर्थ ही तारीफ,उनको मित्र कहते है
स्वयं पर मुग्ध है देखो,यहाँ कितने कविगण ही
जो झूठी शान की जलधार में,दिन रात बहते है!
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