पाखंडियों पर चंद पंक्तियाँ,,,,
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धरम सनातन की,इस गंगधार में जो
नालियों का अपवित्र,नीर घोलते है जी
भगवा बाना पहन,और कंठहार धर
खुद को यहाँ जो बाबा,पीर बोलते है जी
दास-दास बोलते जो,स्वयं भगवान बन
"काम"के अधीन हो,अधीर डोलते है जी
ऐसे दुःशासनों के मुंड,काटके संहार करो
आस्था के नाम पर जो,चीर खोलते है जी!
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया
7828927284
COpyright
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