कितने आँगन से चिड़ियों के नातों को वे तोड़ गए कितने आंखों से आँसू के रिश्तों को वे जोड़ गए तंत्र की लापरवाही ने कैसा ये नरसंहार किया कितने माँ के लिए सिसकती रातों को वे छोड़ गए!
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