"""मजदूर""""""
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पसीने से नहाया धूल धूसरीत वह मजदूर
सूर्य भी जिसके आगे सर झुकाता है
सृष्टि का हर विकास जिसकी देन है
आखिर क्यों अभावग्रस्त जीवन बिताता है?
रोटी की जुगत में खून पसीना एक करते
कभी खानों,मिलों,स्टेशनों में नजर आता है
हाड़तोड़ श्रम कर दो जून की रोटी जुटाता है
श्रमवीर वह पग-पग पे क्यों शोषित किया
जाता है?
सृष्टि का हर विकास...................
विडंबना तो देखो संसार की,,,
स्कूल मजदूर बनाता है उसके बच्चे शिक्षा से
दूर है
होटल मजदूर बनाता है उसके बच्चे भोजन से
दूर है
अस्पताल मजदूर बनाता है उसके बच्चे ईलाज
से दूर है
दूसरों को महल देने वाला झोपड़ी में पैदा होकर झोपड़ी में मर जाता है!
सृष्टि का हर विकास............
क्यों न हम एक नया समाज बनाए
कोई शोषित न हो जहाँ सबको अधिकार दिलाए
ऊंच नीच का भेद भुलाकर सबको गले लगाए
धर्म मानवता का हमें यही पथ तो दिखलाता है!
सृष्टि का हर विकास...............
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रचनाकार-सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
सर्वाधिकार सुरक्षित
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