पहिनने वालों ने उसकी तपन शायद नहीं देखी । चमक देखी छिपी उसमें जलन शायद नहीं देखी । अँगारों को सहा जिसने वही बस बन सका कंचन । जमाने ने अंगीठी की अगन शायद नही देखी!
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