****************** इतना टूटा कि फिर जुड़ न पाया उन गलियों की ओर मुड़ न पाया जिनसे हौसला था भरोसा उसी ने तोड़ा गिरा इस तरह पँछी की फिर उड़ न पाया ******************** सुनिल शर्मा"नील" ओजकवि,थानखम्हरिया,(छ. ग.)
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