बुधवार, 19 अप्रैल 2017

भारती निराश

अपना वजूद जो स्वंय जानते हैं नहीं
अपने से छोटा मानते हैं आसमान को
भारती निराश आज लाड़लों का हश्र देख
सेना से ही राजनेता माँगते प्रमान को
हाथ में बँदूक पर हाथ बँधे सैनिकों के
लगता बदलना पड़ेगा संविधान  को
मारा जा रहा है थप्पड़ों से सैनिकों को हम
मौन हैं क्या हो गया है देश के प्रधान को

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