मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

भारतीय सेना के सैनिकों को पत्थरबाजों के लात मारने पर दिल्ली से आह्वान करती एक रचना

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भारती निराश आज,लाडलों का हश्र देख
सेना के जवान यहाँ,लात-जूते खा रहे
हाथ है बन्दूक पर,तंत्र ने है बांधे हाथ
सिंह के सम्मुख देखो,श्वान गरिया रहे
देश आज चाहता है,खोया हुआ स्वाभिमान
दिल्ली दे आदेश लाखो,हाथ खुजला रहे
सूद संग होगा प्रतिकार,दुश्मनों से अब
जीते जी जलेंगे जो कि,पत्थर चला रहे!
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गीत पाकी गा रहे

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