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हाथों में है रंग सभी के,खुद को कहाँ
छुपाऊँ रे
चाहूँ रँगना तुमसे ही मैं ,किस किस को
समझाऊँ रे
रंग न जाए कोई दूजा,कान्हा अब तो
आ जाओ
भंग पिए सब रंग लगावत,कैसे बचकर
जाऊँ रे
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सुनिल शर्मा"नील"
7828927284
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 11 मार्च 2017 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in