सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

बसंत

              ""बसंत""
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अलसाई धरती में उमंग छाया है
ऋतुराज बसन्त वापस आया है
सर्दी सरक करके गायब हुई है
दिनकर के होठों लाली खिली है
धरती ने ओढ़ी पीली चुनर है
कलियों पे झूमे देखो भ्रमर है
आम के तरू बौरों से सजे है
कोयल कूंको से पी को भजे है
प्रीत की बयार चले चहुओर है
मिलन को आतुर पोर-पोर है
मौसम को कैसे खुमार आया है
पुष्पों के सुगंध ने चमन महकाया है
बागों में बहार नजर आने लगी है
तितलियाँ झुंडों में मंडराने लगी है
मोहल्ले में फाग के गीत सुनाते है
प्रेयसी को होली के दिन याद आते है
राधा भी लगाए है मिलन की आस
साँवरिया से मिलादे रे पावन मधुमास!
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
CR
रचना-06/02/2017







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