रविवार, 6 नवंबर 2016

निहारे राह भाई की


भाई दूज पर एक जवान के घर का चित्र,,,,,,,,,,
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जलाकर आस का दीपक,निहारे राह
भाई की
जानती है वो रण भू पर ,है फिर भी चाह
भाई की
अश्रू की धाराएँ बहती,देखती चित्र को
अपलक
टिकाकर सिर को गोदी में,बहन रोती है
माई की|
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284
9755554470
Copyright
07/11/2016

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