बुधवार, 22 जून 2016

नील के दोहे


नील के दोहे
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"रूप"
1)चंदा घलो लजा जथे ,अइसन तोरे रूप
मीठ मंदरस के हरस,गोरी तै तो कूप

"नाक"
2)काम कर अइसे जेमा,ऊंचा होवय नाक
अपजश ले होथे बने,हो जाना जी खाक

"ज्ञान"
3)देवत रहीस मंच मा ,शाकाहारी ज्ञान
रात दिन उही मांस ले,करत हवे असनान

"पाँव"
4)तीरथ ले बढ़के हवय,मातपिता के पाँव
भूलव झन ओला कभू,जेन मया के छाँव

"हाथ"
5)किरिया खावय जेनहा,दुहू जनमभर साथ
रद्दा बीचे मा उही,छोड़त हे अब हाथ
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सुनिल शर्मा "नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा
7828927284
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