कविता- माँ
(मातृ दिवस पर प्यारी माँ को समर्पित)
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प्रेम का है कुंज और आशीषों
का पूंज वही
धरती में जीवन का 'स्रोत'
कहलाती है
विपदा भी घबराते जिसके
उच्चारण से
शक्ति का वह ऐसा 'स्त्रोत'
कहलाती है|
जिसका सानिध्य पाने देवता
तरसते है
शीतल"ममत्व"का वह कूप
कहलाती है
जिसके निकलने से मिट जाती
कालिमा है
"माता"वह संस्कारों का धूप
कहलाती है
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
08/05/2016
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