शुक्रवार, 18 मार्च 2016

गद्दार "वोवेसी"

रचना-सुनिल शर्मा"नील", थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़) 7828927284 ********************************
जिस भूमि को 'कलाम' ने मरते दम तक था
मान दिया
जिसके खातिर ही 'हमीद' ने न्यौछावर था
प्राण किया

जिस भूमि की महिमा को वेदों ने भी
बतलाया है
"वन्दे मातरम्"कह करके वीरों ने माथ
लगाया है

जिस माता के लिए जवानी सूली पर चढ़
जाती हो
जिसके आन के खातिर बहने अपना सिंदूर मिटाती हो

जिस माँ ने पावन हाथों से तुझको इतना
प्यार दिया
बोल "वोवेशी" उस माता पर फिर तूने क्यों
वार किया

तु ऐसा गद्दार है जिसको माता कहना न
भाया है
अपने माँ के ही आँचल में  जिसने आग
लगाया है

दिया हवाला संविधान का भारत माता न
बोलूँगा
छुरी अड़ा दो गले पे फिर भी अपना मुँह न खोलूँगा

कौन था पहले आया मुझको यह थोड़ा
बतला दे तू
संविधान था पहले या पहले था हिन्द
दिखला दे तू

अम्मी को अम्मी तू क्या संविधान देखकर बोलेगा
कुर्ते-पायजामे भी क्या संविधान देखकर
पहनेगा

मात्र भूमि का खंड समझ न ,धरती है यह अभिनन्दन की
जिसकी माटी माथ लगाई जाती है उस
चंदन की

जिन्ना के औलाद तुझे सुन देश आज
शर्मिंदा है
शुक्र मना भारत में ऐसा कहकर भी
तू जिंदा है

माना सोये है "कुछ"पर एक दिन जब
सारे जागेंगे
तेरे जैसे आस्तीन के साँप पाक तब
भागेंगे

हैदराबाद को पाक बनाना सपना तेरा
रह जाएगा
आएगा वह दिन भी जब तू वन्दे मातरम्
गाएगा

"नील"कहे जिस दिल में प्रेम न मुल्क के
खातिर बसता हो
कुचलों सिर ऐसे साँपों का जो राष्ट्र को मेरे डसता हो| ********************************* कृपाकर बिना काट-छाँट के मूल रूप में ही शेयर करे...............................
copyright are reserved................
18/03/2016

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें