शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

क्यों नही दिखता वह शख्स:हिंदी कविता

मैं वह फूल हूँ जो रौंदा गया हूँ किसी के पैरो तले निर्दयता से
लगाया गया हूँ ठप्पा अपराधी का
जला हूँ किसी के व्यर्थ क्रोधानल में
पाया हूँ तिरष्कार की अनंत पीड़ा
डाला गया हूँ चिंतन के अँधेरे कूप में
चला हूँ परीक्षा के अंगारो पर सौ बार
उड़ा हूँ खुद की खोज में सूने आकाश में
उस कारण की खोज में जिसमे खुद के अकेलेपन का हेतु उपस्थित है
नजरियों के और नजरों के बदलने का उत्तर निहित है
जीया हूँ एक-एक पल में सदियों के समय को तड़पाया गया हूँ हर पल के द्वारा किसी अपराधी की तरह
पूछा गया हूँ गाँव के गलियो,तालाब,वृक्षों,साथियों से
कि अब क्यों तू चुप-चुप रहता है
खुद में घुलता हुआ सा
मोम सा पिघलता हुआ सा,
क्यों नहीं दिखता वो शख्स जो कभी तुझमे होता था
अल्हड़ सा मासूम,रमता और बिलकुल ही बेफिक्र|
सुनिल शर्मा "नील" थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
9755554470
रचना-09/07/2015

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