गुरुवार, 19 नवंबर 2015

"देवउठनी एकादसी ले सुरु होथे मंगल काम"

"देवउठनी"जइसे कि नाव ले पता चलत हे,अइसन एकादसी जेन दिन देव मन नींद ले उठथे देवउठनी एकादसी कहाथे|आज के दिन बिस्नु जी अउ जम्मों देवतामन अपन नींद ले उठथे|सास्त्र म अउ सनातनी हिन्दू परमपरा म देवउठनी एकादसी के अड़बड़ महत्व हे|आजे के दिन ले जम्मों मंगल काम(बर-बिहाव,घर पूजा,पचिस्था ,झालर उतारना जम्मों)होय बर चालु होथे|एखर ले पहिली देव मन के सुते के सेती मंगल काम नइ करे जाय|

"सालिग्राम अउ तुलसी माता के होथे बिहाव"

आजे के दिन भगवान् सालीग्राम अउ तुलसी माता के बिहाव होथे|जम्मों मनखे तुलसी चौरा ल गन्ना डांग म सजा के अउ गन्ना के मँढ़प बनाके सुग्घर लाइट, झालर,दीया म सजा के घर म रखे किसन कन्हैया के छोटकन मूरति ल लान के तुलसी चौरा म बिहाव कराथे|पान,फूल,नरियर अउ मउसमी फल चढ़ाथे,सुग्घर बिधि बिधान ले जोड़ी संग आरती उतारे जाथे अउ घर परवार के सुख सांति बर असीस माँगथे|हमर संस्कीरति म तुलसी ल सबले पबरीत देबी माने गेहे|
                              हर छत्तीसगढ़िया मनखे अउ हिन्दू भाई बहिनी मन के अंगना म एखर बास रहिथे|बिन तुलसी घर ल मरघटी माने गेहे|अड़बड़ अकन देवता मन म तुलसी बिन भोग नइ लगय|बिन तुलसी बिन कलजुग के डोंगा पार नइ होवय अइसन केहे गे हे| "तुलसी बिहाव के कथा" भागवत के अनसार तुलसी ह जालंधर राक्षत के गोसइन रिहिसे|भगवान् बिस्नु ह अपन जोगमाया म करके ओखर वध करीस|पति के वध के बाद तुलसी जउन पतिबरता अउ सती रहिसे अपन आप ल भसम कर लिस |ओखर भस्में ह तुलसी के झाड़ बनिस अइसे कहे जाथे|भगवान् बिसनु ह ओखर पतिवरता धरम ले अड़बड़ परसन होइस अउ अपन अरधानगनी रूप म ओला सिवकार करीस|बिसनू जी ह वरदान दिस की जेन मनखे मोर गोपाल जी(लड्डू गोपाल )म तुलसी चढ़ाही अउ मोर बिहाव तुलसी संग जेठवनी के दिन कराही ओला बैकुंठ मिलही तेखरे सेती आज के दिन तुलसी अउ सालिग्राम के बिहाव करे जाथे|

"गन्ना(कुसियार)के रहिथे बिसेस मांग"

आज के दिन पूजा म कुसियार के बिसेस मांग रहिथे|तुलसी दाई के मंडप ल कुसियार म सजाय जाथे|आज के दिन कुसियार चारो मुड़ा बजार म देखे बर मिलतेहे|मनखे मन पूजा म एखर महतव देखके आज के दिन कुसियार बिसाथे| लईका मन पूजा के बिहान दिन रसदार कुसियार ल चुहक-चुहक के सवाद लेथे|

"हमर संस्कीरति सिखोथे परियावरण बर मया"

तुलसी बिहाव भर नहीं ढंगलगहा सोचे जाय त हमर संस्कीरति हमला परियावरण ल मया करे अउ मिलके रेहे के संदेस देथे|चाहे तुलसी पूजा होवय,बर पूजा,पीपर पूजा,कि चाहे पूजा म आमा पेड़ के पत्ता ,छाल अउ डारा के हवन बर उपियोग|जम्मों म एके संदेस हे कि मनखे जीव-जंतु अउ परियावरन सब जुरमिल के रहय तभे परकीरती के चालन ठीक रहही|ये सब तिहार के बैज्ञानिक अउ आधयात्मिक दुनो महतव हे|हरेली अउ जम्मों छत्तीसगढ़ी तिहार घलो मनखे के आपसी परेम अउ जीव-जंतु,परियावरन संग मिलके रेहे के संदेस देथे|अइसन संसकीरति के भाग होना सिरतोन म गरब ले भर देथे|

सुनिल शर्मा "नील"
थान खम्हरिया ,बेमेतरा
7828927284
19/11/2015

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