मंगलवार, 17 नवंबर 2015

परछाई की तरह संग चलता है

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      परछाई की तरह संग-संग चलता है
     कभी मौन ,कभी चिड़ियों सा चहकता है
     एक एहसास जिसकी अनुभूति जुदा है
     "मुहब्बत"है तेरा जो मुझमें कहीं रहता है|
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        सुनिल शर्मा "नील"
        थान खम्हरिया,छत्तीसगढ़
         7828927284
          CR
         17/11/2015
    
    
     

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