शनिवार, 7 नवंबर 2015

असहिष्णुता पर मेरी कविता

(देश में नकली माहौल बनाने और अपने निजी स्वार्थ - (देश में नकली माहौल बनाने और अपने निजी स्वार्थ हेतु देश की छवि विश्वपटल में ख़राब करने हेतु सम्मान लौटाने वालों पर कटाक्ष करती हमारे मित्र कवि सुनिल शर्मा 'नील',थान खम्हरिया की ताजा रचना,कृपा कर मूल रूप में ही शेयर करें ..कवि के नाम या रचनाकार के नाम के साथ छेड़छाड़ न करें|)
रचनाकार-सुनिल शर्मा 'नील'
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चाटुकारों की फ़ौज निकली देखो माहौल
बनाने को|
जो पाये थे चाँट के तलवे सब पुरस्कार
लौटाने को||
इतनी हिंसा हुई वतन में पहले भी तब क्यों
सोए थे|
सोया था क्यों जमीर सबका तब क्यों न तुम
रोए थे||
कटता था सर हेमराज का जब आतंकी
तलवारो से|
कत्लेआम हुए सिक्खों के जब गलियों -
चौबारों पे||
बोलो तब क्या मानवता अलमारी में रख  भूल गए|
तब क्यों बोलो कलम तुम्हारे ये सब लिखना
भूल गए||
तब क्यों न स्मरण हुआ अपना सम्मान
लौटाने की|
एक आदर्श नागरिक,साहित्यकार धरम निभाने की||
साहित्यकार नहीं लगते ये सारे लगते
पिट्ठू है|
जो वो बोले ये बोलेंगे अपने आका के
मिट्ठू है||
जब लौटेंगे चक्र परम और शौर्य ,देश के
वीरों के|
तब मानेगा देश जल रहा असहिष्णुता के
तीरों से||
दुनिया नहीं अबोध भइए सारी चालाकी
समझती है|
ये दुनिया है जहाँ ईमान लिफाफों में बंद
बिकती है||
कलमकार हो कलम से क्रान्ति शंखनाद कर
देते तुम|
रचनाओं के माध्यम से जनता का दर्द लिख
देते तुम||
या फिर अभिनय से अपने कोई सन्देश
ही दे देते|
जिस जनता ने मान दिया कभी उसकी सुध
भी ले लेते||
क्यों उन्मादी बातों से देश की यूँ बदनामी
करते हो|
दर्द लिखो देश का सारा क्यों मनमानी
करते हो||
(रचनाकार-सुनिल शर्मा 'नील')
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suneel.sharama.56808
05/11/2015




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