बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

मुक्तक(29/10/2015)

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घर कमरें बने रिश्ते कहीं खो गए
स्वार्थ के युग में कितने अंधे हो गए
भूख से तड़पते रहे रातभर माँ-बाप
बेटे और बहु घोड़े बेंचकर सो गए|
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सुनिल शर्मा नील
थान खम्हरिया,बेमेतरा
7828927284
CR

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