शनिवार, 1 अगस्त 2015

ए दारी के सावन म

" ए दारी के सावन म कोनो किसान के जी झन तरसय
करबे दया तोर अइसन परभु जम्मो कोती पानी बरसय
धरती दाई के सुसी बुतावय बेंगचा,फाफा सबो अघावय
भुइया पहिरय चुनरी हरियर देख के सब्बो जीव हरसय|

भर जावय तरिया-नदिया सब अनपम लगय रुख-राई
मनय हरेली खुशी के घर-घर,खुश होवय बहनी-भाई
धान डोली म लहलह नाचय ,बोहावय मंद-मंद पुरवाई
कोंवर-कोंवर कान्दि खाके सुग्घर अशीष दय गऊ दाई|

बछर भर के खेती,मेहनत के तही हरस एकठन आशा
तीज तिहार के रंग तय आवस ,तोरेच ले हावे सांसा
करिया बादर ऊपर चढ़के रिमझिम गिर बरखा दाई
आस के डोरी टोरके हमर देबे झन तय
निरासा|
सुनिल शर्मा "नील" थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.) 7828927284(व्हाट्सएप्प)
9755554470
रचना-01/08/2015 morepankh.blogspot.com

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